नन्हे-नन्हे ये शिशु
अपनी तुतलाती भाषा में
जब कहते है
दीदी हम तो खेलेंगे
पढेंगे नहीं |
तब मैं अकसर सोचने पर विवश
हो जाती हूँ
क्या गलत कहते हैं
शुभम,शाहीन और सोनिया |
ये उम्र ही खिलंदड़ी की है
जब हम जबरन उन्हें अ से अनार और
आ से आम रटाते है
और वह बोलने के बजाय अनार और
आम खाने की फरमायश करते है |
ल से लट्टू सिखाने पर
लट्टू चलाने की जिद
तो प से पतंग उसे आकाश
में उडती नजर आती है \
रेट माने चूहा और
केट माने बिल्ली कहते ही
वे नन्हे -मुन्ने चूहें बिल्ली की
अपनी ढेर सारी बातें
मसलन दीदी बिल्ली सारा दूध पी गई
और चूहे ने मेरा कपड़ा
कुतर दिया |
बों बतराना चाहते है|
और कमाल है
इन की बातें कोई
नहीं सुनना चाहता |
सब बस उसे मारपीट कर
उसके छोटे से दिमाग में
सब कुछ भर और ठूस देना चाहते है|
तब समझ आया इन बच्चों की तो
एक बिलकुल निराली दुनिया है
जहा किताबे नहीं
केवल आपका स्नेह और ममत्व चाहिए|
फिर सीख तो वे यूं लेते है
कि बस ज़रा सा सहारा
भर लगा दीजिए |
सच कहूँ तो
मैं इन बाल-गोपालो को
नहीं सिखाती
बल्कि ये ही मिल कर मुझे
रोजाना एक नया सबक
सिखा देते हैं|
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स्नेह और ममता सबसे बड़ा पाठ है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ागर सभी अध्यापकों का दिल आपकी तरह कोमल ममतामयी हो जाये तो देश की काया पलट जाये। उमदा रचना के लिये बधाई
ReplyDeleteसच कहा आपने बच्चो के मन की बात और उनकी सोचे ऐसी ही होती हैं. बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबच्छों के मनोविज्ञान को बताती सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteक्या बात है बीनाजी ! बहुत ही भावपूर्ण और श्रेष्ठ रचना रच डाली आपने ! सच में बच्चे ऐसा ही सोचते हैं और यदि उन्हें कक्षा में ज़बरदस्ती बैठा कर पुस्तकें पकडाने की जगह खुले आकाश के नीचे वास्तव में इन वस्तुओं से रू ब रू कराया जाए तो वे शायद और अधिक रूचि के साथ सीखेंगे और जल्दी भी सीखेंगे ! बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना !
ReplyDeleteबीना जी बहुत सच्ची और अच्छी बात कही है आपने अपनी इस रचना के माध्यम से...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
साधना जी की टीप को ही मेरी टीप मन जाये
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