Sunday, July 11, 2010

क्या हुआ

क्या हुआ जो हमारे वे हो न सके
हम पर मर न सके हम से जी नसके ।

जब -जब हमने बुलाया वे आ न सके
हाल अपने दिल का सुना ना सके।

हमने सपने बुने और बुनते रहे
उनको अपना जहा हम दिखा ना सके।

हमने आंसू बहाये उन्ही के लिये
वे आंसू की माला बना ना सके।

हमने उनको चुना और वे समझे नही
हम उन्ही के ख्बावो मे डूबे रहे ।

इंतहा हो गई और वे आये नही
हमको पूछा नही और छूआ नही ।

पर हम उनके हुए और होते रहे
साथ उनका कभी भी मिला ही नही ।

अब हम भी चले उनसे सब तो कहा
पर वे समझे नही तो हम क्या करे।

2 comments:

  1. मन की व्यथा को अच्छे शब्द दिए हैं

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  2. इंतहा हो गई और वे आये नही
    हमको पूछा नही और छूआ नही ।
    nice

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