बडे दुख का विषय है कि अभिभावक अपने पाल्यो की प्राथमिक शिक्षा के प्रति सतर्क नही है।इसे अक्षर ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ नही माना जाता जबकि सारी इमारत इसी नीव पर आधारित होती है।किस कक्षा को पढाती हो ,क्या कहा पहली दूसरी को तब तो समखो तुम कुछ नही कर रही हो । तुम्हारे तो मजे ही मजे है ।बस अपना टाइम पास कर रही हो। इन तिप्पणियो को सुनते-सुनते तो मुझे भी इकबारगी यही लगने लगा कि बच्चो को अक्षर ज्ञान देना बहुत ही सरल कार्य है ।शायद यही कारण हो इ प्राथमिक शालाओ के अध्यापको को विशेष तरजीह नही दी जाती।उसे केवल पट्टी ,स्लेट अथवा कापी पर किटकिन्ना डालने वाला मान लिया गया । बहुत हुआ तो सामूहिक रूप से गिनती या पहाडे बुलबाने के लिये अधिक़्रत मान लिया गया।
जब मै अपने बी.एड. प्रशिक्षणार्थियो के साथ प्राथमिक और माध्य्मिक शालाओ मे गई तो कमोवेश मैने गुरुजी का यही रूप देखा ।कक्षा मे इक बच्चे को खडा कर दिया और वह सभी बवच्चो को सामूहइक अभ्तयास करवा रहा है और गुर्
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