Monday, November 1, 2010

दोस्ती

जब पूछो किसी से दोस्ती के बारे में

बड़ा सरल जबाव होता है उसका

अरे दोस्ती का क्या वह तो

हो ही जाती है ,की नहीं जाती |

जब मेरा या उसका काम अटकता है

हम बन ही जाते हैं दोस्त

और जब हम बेकार होते है

दोस्त या तो बन जाते है दुश्मन

या हो जाते हैं तटस्थ

जैसे वे आपको जानाते ही नहीं|

अब नहीं हुआ करते लंगोतिया यार

होते है जींस नुमा दोस्त

जिन्हें जल्दी -जल्दी बदलनेकी

होती है आदत |

कभी सिखाया जाता था

सत्संगति किम न करोति पुंसाम ?

बुरी संगत को

पैर में बंधे चक्की पाट से

तौला जाता था |

और अब

जो जितना बड़ा दुर्व्यसनी है

उतना ही महान है

उसकी दोस्ती से ही

होते हैं आप सर्व् शाक्तिमान

आपके सभी काम हो जाते है सिद्ध

बिना लाइन में लगे हो जाता है प्रवेश |

तो अब न तो मेरा कोई मित्र है ऐसा

जो मेरे सब काम करा पाए चुटकी में

और सिखा पाए शोर्टकट

इसलिए बैठे रहते हैं हम

वर्षों -वर्षों इंतज़ार में

और सोचते हैं हम

क्यों नहीं गाँठ पाए दोस्ती

ऐसे लोगों से जो

बलशाली और प्रभावशाली हैं|

वरना हमारे भी हो जाते

वारे न्यारे कभी के|

4 comments:

  1. सुन्‍दर लेखन ।

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  2. अब नहीं हुआ करते लंगोतिया यार

    होते है जींस नुमा दोस्त
    बिलकुल सही बिम्ब है। अच्छी लगी कविता। बधाई।

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  3. इसलिए बैठे रहते हैं हम
    वर्षों -वर्षों इंतज़ार में
    और सोचते हैं हम
    क्यों नहीं गाँठ पाए दोस्ती
    ऐसे लोगों से जो
    बलशाली और प्रभावशाली हैं|
    वरना हमारे भी हो जाते
    वारे न्यारे कभी के|

    बेहद प्रभावशाली...

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  4. आज कल की दोस्ती के नाम आप की अति सुंदर कविता, धन्यवाद

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