Friday, November 5, 2010

मेरा आज कुछ खो गया है

मैं तकरीबन 6 या 7 साल की रही हूंगी जब खेल-खेल में एक चीटा मर गया था और हम दोस्तों ने उसे एक गढ्ढा खोद दफना दिया था और कई दिन तक सबकी नजर बचा मै उस स्थान पर पानी और फूल चडा आती थी।फिर धीरे-धीरे मैं सब कुछ भूल गई। 98 में हम जिस घर में रहते थे उस घर का बालक इक दिन अपनी जेब मे दो स्वान शिशुओ को लेकर आया और बोला आंटी जी देखो कितने प्यारे ह ैआप एक ले लो और एक मैं रख लूंगा । मैंने उस कुछ दिन के दुध मुंहे बच्चेको अपने घर में रख लिया और उसके हलके भूरे रंग को देखते हुए बच्चो ने उसका नामकरण भी कर दिया ब्राऊनी ।अब तो वह ब्राऊनी हमारे घर का खिलौना बन गई। पर उसे पालने के लिए जो कवायद चाहिए थी उसे मैं अपनी नौकरी के कारण पूरा नहीं कर पा रही थी।तो मैंअपने मांपिता के पास उसे छोड आई पर हर दोतीन दिन बाद उसे जाकर देख आती और मां कहती बेटा यह तो खाना भी नहीं खाती और तुम लोगों को बहुत याद करती है। लेकिन धीरे-धीरे वह पिताजी की चहेती बन गई और उसका भोजन पानी सनब पिताजी के साथ ही होता था । प्रसब के समय मां एक जच्चा जैसी देखभाल करती और उसके लिए कभी हलुआ और कभी खिचडी बनाती तो पूरा घर कहता अरे भाई पशु है पशु की तरह ही रखो । और पिताजी तो उससे भी एक कदम आगे थे। उसके सोने के लिए बिस्तर तैयार करना और पूरे दिन उसकी छोटी छोटी आवश्यकताओ का ध्यान रखना कभी-कभी हम भाई बहिनो के मन में हलका-फुलका आक्रोश पनपाता था ।
2002 में जब पापा नहीं रहे और हम अपने नव निर्मित घर में मां और ब्राऊनी के साथ रहने लगे,तब मैंने जाना कि ब्राऊनी तबहुत सदय और समझ दार हो गई थी। हम जब भी बाहर होते वह खाना खाना छोड देती ।गलती होने पर सिर झुका कर खडी रहती। मैं ,मेरे पति ,बच्चे ,मेरी बहिन सबके लिए ब्राऊनी उतनी आवश्यक हो गई थी ।वह हमारे घर के अनिवार्य सदस्य के रूप में जी रही थी ।अभी दो साल पूर्व जब मां भी चल बसी तब मुझे ब्राऊनी को पूरी तरह संभालना था ।सब तो शायद उसे पाल रहे थे पर मैं कहीं दिल से उससे जुड गई और उसके सम्बन्ध कहा गया एक शब्द भी मुझे तीर जैसा लगता । एक माह पूर्व उसे ब्रेस्ट केंसर हुआ डाक्तरों को दिखाया ।उसे कुछ इंजेक्शन दिए पर बता दिया कि यह अब ज्यादा दिन नहीं चलेगी । मुझे तो उसी दिन मानसिक रूप से तैयार हो जाना चाहिए था पर मोह कहीं कितनी जल्दी थोडॆ ही छूटता है। मैं उसके लिए और सजग हो गई । उसकी मन पसन्द सभी चीजे उसके लिए रखती।उसे बचपन में कच्चा आलू,गाजर ,भुटिया ,गिरी खाना बहुत पसन्द था।लेकिन अब वह इन की ओर तकती भी नही थी। उसकी दर्द भ्री रातों की गवाह हूं मैं , रात में उसे जाकर कम्बल उडा आना ,कभी उसकी पानी की बाल्टी भर कर रख आना मेरी दिनचर्या का अंग हो गया ।
आज मेरी वही प्यारी ब्राऊनी बिना किसी को कुछ बताए ,चुपचाप चिर निद्रा में चली गई। मेरा मन बहुत बैचेन है। कहने को तो दीपाबली की पूजा की है पर आज त्योहार त्योहार नहीं लग रहा। लगता है मेरा कहीं कुछ खो गया है ।

4 comments:

  1. पशुओं के साथ भी मनु्ष्य आत्मीयता से जुड़ जाताहै।
    फ़िर उसकी कमी वर्षों महसूस होती है।

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  2. दुख क्यों न हो, वह भी तो एक सदस्य थी..

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  3. अरे हमारी टिपण्णी कहां गई?

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  4. राज भाई आपकी टिप्पणी नुक्कड़ के आलेख पर थी वह वही संभाल कर रखी है |आपकी सभी टिप्पणियाँ मेरा साहस है|

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