Friday, November 26, 2010

ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग बहुत जरूरी है |

मनुष्य का पूरा जीवन सीखने और सिखाने के अनुभवों से भरा हुआ है | जन्म से लेकर मृत्यु तक हम सीखते और सिखाते रहते है| कभी-कभी हम सीखते हुए भी सिखा रहे होते है इस द्रष्टि से प्रत्येक व्यक्ति अध्यापक है और अपने जीवन काल मेंकभी ना कभी शिक्षकके संपर्क में अवश्य आया होता है| याद कीजिए आपकी स्मृति में किस अध्यापक की यादे आज भी ताजा हैं | हो सकता है वक्त की धूल ने सब कुछ धुंधला कर दिया हो पर जैसे ही वह धूल हटती है अथवा आपके द्वारा हटाई जाती है सब कुछ कितना साफ़ दिखाई देने लगता है मानो कल की ही बात हो | हाथ में डंडी लेकर पढाने वाले मास्साब ,गुस्से में त्योरिया चढाते और बात- बात में गरियाते सर , कुछ भी पूछने पर मार का डर,लेकिन कभी-कभी इतने अच्छे अध्यापक जिनके कारण ही हम स्कूल जाने कों उत्साहित हो जाते ,इतनी अच्छी अध्यापिका कि माँ और दीदी से भी ज्यादा प्यारी लगती ,| आखिर क्या था उन अध्यापकों में कि आज भी उनका नाम हमारी जुबान पर चढा रहता है |
भले ही वे प्रशिक्षित न रहे हो पर उनके जीवन के अनुभव ने उन्हें हमारे समीप ला दिया था |क्या ज्ञान केवल पुस्तकों से ही प्राप्त किया जा सकता है ,काश ऐसा होता तो हम सभी आज बड़ी -बड़ी उपाधियों के साथ पंडित और विद्वान बन चुके होते | आज हमारे पास मोटी-मोटी किताबें तो है पर उनका ज्ञान हम पचा नहीं पाए है | हमने जो भी कभी पढ़ा होगा ,वह केवल परीक्षा के लिए और जैसे ही हमने परीक्षा पास की सबकुछ विस्मृत हो गया |क्योंकि हमने तो जो पढ़ा था और जिसके लिए पढ़ा था वह लक्ष्य तो मिल ही गया फिर उसे याद करने की क्या आवश्यकता रह गई ?यही हम मात खा जाते हैं |
जब हम दूसरों कों सिखाना प्रारम्भ करते हैं तब सबसे पहले हमारा व्यक्तित्व परिलक्षित होता है | हम कैसे है ,जीवन में किन चीजों कों हम प्राथमिकता देते है ,हम अपने छात्रों के विषय में क्या सोचते हैं ,हमारा शिक्षण के प्रति कैसा नजरिया है | हम छात्रोंके दिमाग में सूचनाए भर रहे होते हैं या उनके मस्तिषक कों सक्रीय करना चाहते हैं| किसी भी ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग कक्षा में छात्रों कोसजग रखता है |यदि हम किसी भी विषय कों पढाने से पूर्व उस विषय की जीवन में उपयोगिता बता दें तो उस विषय के प्रति रूचि बढ़ जाती है और हम उस विषय कों सहज रूप में सीख लेते है क्योंकि उसके साथ हमारा लक्ष्य और मन दोनों जुड जाते है|पहले हम तो अपने ज्ञान भण्डार की छटनी कर ले कि क्या बताना जरूरी है और क्या छोड़ा जा सकता है | विषय का मंथन तो कर ले , उसकी गरिष्ठता कों सुपाच्य तो बना ले पर हमें इतना सब्र कहाँ है हमें तो बस पढ़ी गई सूचनाओं कों ज्योंका त्यों उसके दिमागमें फीड कर देना है और उसे परीक्षा पास करने लायक बना देना है यही हमारा शिक्षण है और इसी काम का हमें वेतन मिलता है |लेकिन यह क्रम आखिर कब तक चलता रहेगा ?
सीखा इसलिए जाता है कि जिससे जीवन में कभी समस्या आये तो हम उसके समाधान ढूढ़ सके | मुझे पिताजी की एक बात आज भीयाद है | एक बार किसी घरेलू समस्या के कारण हम सभी परेशान थे | पिताजी कुछ तय नहीं कर पा रहे थे | तब उन्होंने हम भाई-बहिनों से कहा अरे जहा चार-पांच पीएच.डी बैठे हो वहा भी समस्या के समाधान नहीं निकला करते | हम सभी अवाक रह गए और सोचने लगे कि रिसर्च में तो यह्कभी सिखाया नहीं गया| पर आज जरूर समझ आ गया है कि यदि एक बार आपमे विश्लेषण की क्षमता विकसित हो जाए तब आप अधिकतर परेशानियो के हल ढूढने में समर्थ हो ही जाते है और नहीं तो कम से कम उसे अपने ऊपर हाबी तो नहीं होने देते |इसलिय हमेशा याद रखना चाहिए कि जब तक हम सीखे गए ज्ञान का उपयोग नहीं कर लेते तब तक वह ज्ञान हमारे अनुभव का विषय नहीं बनाता और जो हमारे अनुभव का विषय नहीं हो सकता वह पुस्तकों में तो शोभा पा सकता हैपर हमारे जीवन जीने का आधार नहीं हो सकता |

1 comment:

  1. बहुत ही सारगर्भित और व्यावहारिक आलेख है आपका ! वाकई ऐसा पुस्तकीय ज्ञान किसी काम का नहीं जो हमारे जीवन में कुछ जोड़ ना सके, हमारे व्यक्तित्व को परिमार्जित ना कर सके, हमारी अनुभव सम्पदा को समृद्ध ना कर सके ! केवल परिक्षा उत्तीर्ण करने के उद्देश्य से प्राप्त किया गया ज्ञान निर्मूल होता है शायद इसीलिये ऐसी शिक्षा को प्राप्त करने वाले लोग छोटी सी परेशानी में भी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर विचलित हो जाते हैं ! पढ़ने और पढ़ कर गुनने योग्य एक बहुत ही बेहतरीन आलेख !

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