ऐसे ही नहीं पनपते रिश्ते ।हम जिस समाज और घर परिवार के मध्य रहते हैं तो हमें उन रिश्तों का मान करना भी आना चाहिए। पर हम तो धीरे -धीरे अपने लोगों से ही कटते जा रहे हैं।हमने अपने लिए एक नई दुनिया बनाने की कोशिश की है पर हम अपनी जड से ही कट गए है। प्रत्येक बच्चा अपने माता और पिता के परिवार से निश्चित रूप से जुडा ही होता है और उसे अपने मा और पिता के परिवार के बारे में पूरी जानकारी होनी ही चाहिए । पर कम ही बच्चे ऐसे है जो अपने बाबा दादी नाना नानी ताऊ ताई चाचा चाची बुआ फुफा मौसा मौसी बहन बहनोई मामी मामी के रिश्तों की जानकारी रखते हैं । कारण है कि वे इन परिवारों में यदा-कदा जाते हैं और उन्हें भी अंकल आंटीनुमा जैसेकभी-कभार आने वालों कीलिस्ट में रख लेता है।
करें भी क्या ,हमारी व्यस्तताए जो इतनी अधिक बढ गई हैं। हमें आसमान की ऊंचाईयां जो छूनी है ,बडा उद्योगपति बनना है । ये पारिवारिक रिश्ते तो बहुत निभा लिए अब हमें ग्लोबल बनने दीजिए । हमारे पास देर रात तक चेटिंग के लिए समय है पर अपने व्रद्ध माता-पिता के पास दो घडी बैठने के पल नहीं। मा कब से आस लगा रही थी कि बेटा त्योहार पर आयेगा हम खूब सारी बातें करेंगे पिता ने सोचा था अब की बार बच्चे आयेंगे तो छत बदलबा लेंगे,बारिश में बहुत परेशानी होती है । पर बच्चे आये जरूर ,सबके लिए उपहार भी आये पर किसी के पास दो पल बैठने की फुरसत नहीं । सब आते ही अपने -अपने कार्यों में व्यस्त हो गए ।मां पगलाई सी बच्चों के मनपसन्द खाने बनाने में जुटी रही और जब उसने सोचा चलो अब तो फुरसत है कुछ कहेंगे कुछ सुनेंगे,पर ये क्या बच्चे तो अपनी दुनिया में मस्त है । जब भी मां वृहत परिवार के विषय में बताना चाहती हैं बडी उपेक्षा से अनसुना कर टिप्पणी दाग दी जाती है-
-क्या मां आप दूसरों के बारेमें बातें क्यों करती है ,और मां अवाक है क्यों रे ये दूसरे कौन हो गये । चुन्नी तेरी बुआ की और पूनम तेरी मामा की लदकी है सब भूल गया क्या ?क्या मां ,अपनी व्यस्तता में अपनी ही बहिन ध्यान रह आये यही बहुत है किस -किस को याद रखूं। मेरे पास बहुत काम है । इस सब के लिए समय नहीं।
सच है जिन रिश्तों की हमें परवाह ही नहीं वह अब क्यों बचे रहे ? क्या अपने सगे-सम्बन्धियो के साथ हमारा यह बरताव स्वागत योग्य है?हमने अपनी जडे इतनी खोखली कर ली हैं कि हम स्वयम को पहचानने से ही डरने लगे हैं।जिन रिश्तों को पषा नहीं जाता वह्क्यों कर पनपेंगे। आज हमें वह सब कुछ मिला है जिसकी चाहत हमने की थी । रिश्तों की परवाह नहीं की और अब परिणाम सामने है कि हमें बच्चों को पढाई में उसके खुद के ही परिवार का चार्ट बनाना सिखाना पढता है । जब मैंने बच्चों से कहा कि अपने माता-पिता के परिवार के सभी सदस्यों के नाम लिख कर कर दिखाओ तो बमुश्कोइल उसने चार नाम लिखे मा,पिता भाई का और बहिके नाम पर कह दिया मेरे तो बहै नहीं है । मेरे बार पूछने पर कि बुआ ,मौसी,मामा की लडकी कोई तो होगी उसका नाम लिखो। बडी मासूमियत से जबाव दिया वो मेरी बहिन कैसे हो सकती है । उसका तो भाई है।
अब ये नजरिया यदि बच्चों में विकसित हो रहा है तो हमें निश्चित रूप से सावधान हो जाने की जरूरत है। आखिर हम कहां जाना चाहते हैं ,हमने अपने लिए क्या लक्ष्य चुना है? हमारी प्राथमिकताए क्या हैं ?हम अपने ही हाथों अपने लिए गढ्ढा खोद रहे हैं?विरासत में क्या देकर जारहे हैं हम अपनी सनतति के लिए /क्या इसीभविष्य के सपने संजोये थे हमारे जन्म्दाताओ ने ?हम क्यों भूल रहे हैं कि रिश्तों की पहली बुनियाद आपसी व्यवहार है । हम सुख-दुख के कितने मौकों पर अपने सम्बन्धियों के पास वक्त गुजारते है,कितनी शामें हमारी उनके साथ्बीतती है । क्या कहा समय की कमी हैतो मेरे दोस्त समय तो सबके पास ही 24 घंटे होता है। इस काम को भी जरूरी मानोगे तो समय भी लनिआल्लोगे । एक बार ऐसा करके तो देखो। ये रिश्ते भी खाद पानी मा6गतेहै। जरा देकर तो देखिए कैसे लल्हाने लगेगी रिश्तों की बगिया
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सराहनीय लेखन........हेतु बधाइयाँ...ऽ. ऽ. ऽ
ReplyDeleteचिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
बीना जी एकदम सत्य कह रही हैं, वर्तमान इसी लाइन पर जा रहा है। लोगों ने आंदोलन के रूप में रिश्तों को नकारना शुरू किया तो अब बच्चे उन्हें फालतू चीज समझती है। इस विषय पर बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन हम सभी ने इन रिश्तों को समाप्त किया है। कसूर अकेल नवीन पीढी का नहीं है, पुरानी पीढी अधिक जिम्मेदार है।
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