Monday, November 1, 2010

ऐसे होते हैं पिताजी

क्या आपका बच्चे ने आपकी अंगुली पकड़ के चलना सीखा है ? क्या उसकी तोतली बातें आपके दिमाग में रचीबसी है? क्या आप अपने बच्चे को अपने कंधे पर बैठा कर कभी मेला तमाशा दिखाने ले जाते हैं ?क्या आपका बच्चा आपके सीने से लग कर सोता है?क्या आपकी गोद उसे मिलती है?क्या आप उसेअपने हाथों से खाना खिलाते हैं ?क्या कभी उसका स्कूल बेग लेकर बैठते हैं और उसके बस्ते को चेक करते हैं?क्या आप बच्चे की बातों को तरजीह देते हैं या उसे बच्चा कहकर टाल देते हं?
क्या उसकी मित्रमंडली के बीच कभी उठे-बैठे हैं?क्या आप जानते हैंकि आप के बच्चे को कौन सा खेल खेलना पसंद है?क्या आपकी शामें उसके साथ बीतती हैंया आप इतने व्यस्त हैंकि शाम तो दूर उसके लिए आप छुट्टी के दिन भी उपलब्ध नहीं हो पाते?
क्या पूछा रही है आप ? भला इन सब का पापा होने से क्या सम्बन्ध ? मैंने अपने बेटे के लिए हर वह सुविधा खरीद दीहै जो उसे चाहिए |पढाई के लिए हर सब्जेक्ट का ट्यूटर लगा दिया है| स्कूल आनेजाने के लिए दो-दो गाडिया है |जितना जेब खर्च उससे कहीं अधिक देता हूँ |घर पर हर कार्य के लिए नौकर हैं ,आया हैं ,खाना सब उसकी पसंद का बनता है |उसके कहने से पहले ही उसकी सारी जरूरते हम पूरी कर देते हैं |आखिर मैं दिन रात इतनी मेहनत क्योंकरता हूँ सब उसके लिए ही ना ?अब उसे कहीं भटकने की जरूरत भी नही |लेपटोप है सारी जानकारिया घर बैठे एक क्लिक से प्राप्त कर सकता है और आप है कि मुझसे ही प्रश्न कर रहे है कि क्या आप अपने बच्चे को प्यार करते हैं ?
सच ही है एक पिता भला इससे अधिक क्या करेगा?पर शायद आपका बच्चा अपनत्व कहीं और खोज रहा हैउसे हमने घर नहीं बल्कि इक ऐसी छत जरूर दी है जहां एक साथ सब सामान जरूर मिलता है पर जो मिसिंग है उसे तो हम देखना भी नहीं चाहते ?आखिर क्यों हमारे बच्चे हम से दूर हो रहे हैं |कईं परिवार में केवल पैसा ही सब कुछ बन बैठा है क्यों बीमार होने पर केवल मंहगी दवाओनौर अच्छे अस्पतालों में एलाज्केलिए छोड़कर हम अपन र्कर्तव्य की इतिश्री माँ लेते हैं सेवा और सहानुभूति शब्द तो अब कोष से बाहर हो गए हैहम किसीसे तसल्ली सेबात नहीं कर सकते |उसे सान्तवना नहीं बंधा सकते |इतना समय कहाँ है हमारे पास ? किसी का दुखदर्द पूछने का समय इतने व्यस्त कार्यक्रम से कैसे निकाले और अब परिणाम हमारे सामने है हमारे घर एक अजायब घर और महंगे बाजार में तो बदल गए हैं पर अपनत्व और आत्मीयता कहीं खो गए हैं ?क्या बच्चे के देर से आने पर आप उसके लिए चिंता कर उसे खोजने जाते है या सोच लेते है -कहीं बैठा होगा अपने मित्रों के पास| ज्यादा दखल देना अच्छा नही| सब कुछ सच है पर यह भी उतना बड़ा सच है कि हमें अपने घर बचाने के लिए सजग होना ही पडेगा|

6 comments:

  1. रिश्तों की सही समझ और बदलाव की ज़रुरत तो है ही....
    अच्छी प्रस्तुति....

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  2. बीणा जी आप के हर सवाल के जबाब मे मै हां मे जबाब दे रहा हुं, क्योकि मै यह सब करता हुं , ओर बच्चे अब बडे हो गये हे, ओर भगवान की दया से वो बहुत अच्छॆ हे, धन्यवाद

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  3. कितनी ज़रूरी और सार्थक पोस्ट है आपकी ! वाकई धन कमाने की अंधी दौड़ के कारण और माता पिता की व्यक्तिवादी सोच के चलते आजकल के बच्चे और उनकी भावनात्मक ज़रूरतें परिवारों में पिछड़ती जा रही हैं ! आपने एक महत्वपूर्ण औए संवेदनशील मुद्दे को उठाया है ! केवल भौतिक सुख सुविधायें जुटा देने मात्र से ही कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती ! बच्चों को आत्मीयता, प्यार, भावनात्मक सुरक्षा, विश्वास और संस्कारों की भी ज़रूरत होती है जिसकी पूर्ति केवल माता पिता ही कर सकते हैं ! सुन्दर और सार्थक आलेख के लिये बधाई एवं आप सभी को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  4. आपने कितना अच्छा लिखा है...... दिवाली की शुभकामनायें.....सादर

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  5. नन्हे चैतन्य मुझे खुशी हुई जानकर कि तुम इतना अच्छा लिखते हो मैंने अभी तुम्हारा ब्लोग पढाहै खूब खुश रहो और इसीतरह लिखते रहो।

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