अब हम देहाती गवार नहीं रहे |
बहुत पढ़ लिख गए हैं
पहले तो बक्सों में
दो चार कपडे रखे होते थे
और वही हमारे आलमपनाह हुआ करते थे|
अब तो बड़ी अलमारिया
कपडो से भरी
और लोकर जेबरों से लदे -फदेहै|
हम यह भी नहीं जानते कि
कितने रंग और कितनी वैरायटी
से हमारे बार्दरोब फुल है
पर यह भी उतना ही खरा सच है कि
आज ये सब प्रदर्शन और प्रदर्शन है |
पहनने की इच्छा कब की खत्म हो चुकी है|
आज कोठी में तो आ बसे हैं पर
मोहल्ले के रिश्ते दीमक चाट गई|
घर की बैठक में सोफे और दीवान तो सज गए
पर आने वाले औपचारिक होगये
अब दोस्तों की हंसी और ठहाके नहीं गूंजते |
बेडरूम तो सज गए
पर नींद चोरी हो गई
जहाजनुमा पलंग और गुदगुदे बिस्तरों पर
दंपत्ति करवटें बदलते अपनी ही छाया से
अजनबी हो गए|
घर के आले मेंरखे दर्पण में
मुखडा देखने की फुर्सत तो थी
अब ड्रेसिंग टेबल में अपने चेहेरे
भी बेगाने होगये\
और आप कहते हैं कि
हम आधुनिक हो गए|
बड़ी-बड़ी उपाधियों के पुलंदे तो बंधे
पर बेटा और बेटियाँ ही
पराये हो गए|
बैंकों के खाते तो दुगने तिगुने हुए
पर परिवार तो किरच-किरच बिखर गए|
दुनिया में रिश्ते तो बहुत बने
पर खून के रिश्ते तो
तार-तार हो गए\
और तुम कहते हो कि हम
आधुनिक हो गए|
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beshk hm aadhunik to ho gye.... ab aadhunikta me hi jeena majboori hai....... purana soch-soch kr samay nast karne se kya labh....
ReplyDeleteआईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
ReplyDeletenice
ReplyDeletewaah bahut sundar
ReplyDeleteदुनिया में रिश्ते तो बहुत बने
ReplyDeleteपर खून के रिश्ते तो
तार-तार हो गए\
और तुम कहते हो कि हम
आधुनिक हो गए
बहुत सही !!