Saturday, June 12, 2010

कहते हो कि हम आधुनिक हो गए |

अब हम देहाती गवार नहीं रहे |
बहुत पढ़ लिख गए हैं
पहले तो बक्सों में
दो चार कपडे रखे होते थे
और वही हमारे आलमपनाह हुआ करते थे|
अब तो बड़ी अलमारिया
कपडो से भरी
और लोकर जेबरों से लदे -फदेहै|
हम यह भी नहीं जानते कि
कितने रंग और कितनी वैरायटी
से हमारे बार्दरोब फुल है
पर यह भी उतना ही खरा सच है कि
आज ये सब प्रदर्शन और प्रदर्शन है |
पहनने की इच्छा कब की खत्म हो चुकी है|
आज कोठी में तो आ बसे हैं पर
मोहल्ले के रिश्ते दीमक चाट गई|
घर की बैठक में सोफे और दीवान तो सज गए
पर आने वाले औपचारिक होगये
अब दोस्तों की हंसी और ठहाके नहीं गूंजते |
बेडरूम तो सज गए
पर नींद चोरी हो गई
जहाजनुमा पलंग और गुदगुदे बिस्तरों पर
दंपत्ति करवटें बदलते अपनी ही छाया से
अजनबी हो गए|
घर के आले मेंरखे दर्पण में
मुखडा देखने की फुर्सत तो थी
अब ड्रेसिंग टेबल में अपने चेहेरे
भी बेगाने होगये\
और आप कहते हैं कि
हम आधुनिक हो गए|
बड़ी-बड़ी उपाधियों के पुलंदे तो बंधे
पर बेटा और बेटियाँ ही
पराये हो गए|
बैंकों के खाते तो दुगने तिगुने हुए
पर परिवार तो किरच-किरच बिखर गए|
दुनिया में रिश्ते तो बहुत बने
पर खून के रिश्ते तो
तार-तार हो गए\
और तुम कहते हो कि हम
आधुनिक हो गए|

5 comments:

  1. beshk hm aadhunik to ho gye.... ab aadhunikta me hi jeena majboori hai....... purana soch-soch kr samay nast karne se kya labh....

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  2. आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!

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  3. दुनिया में रिश्ते तो बहुत बने
    पर खून के रिश्ते तो
    तार-तार हो गए\
    और तुम कहते हो कि हम
    आधुनिक हो गए
    बहुत सही !!

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