कान्हा अब तो आना होगा
अपना वचन निभाना होगा
कल-कल करते बरसों बीते
नयना भी अब हो गए रीते |
विदुर घर छिलके खाते हो
द्रुपद का चीर बढाते हो
बिठा कर गीध को निज
गोद में आंसू बहाते हो |
जब हम बुलाते हैं
कान्हा क्यो न आते हो
पल-पल हमें तरसा
न जाने क्या तुम पाते हो|
मेरे धीरज की परीक्षा है
यह तो मुझको मालूम है
पर कान्हा अब क्यों
मुझे कमजोर करते हो|
जब दी बिपत तुमने
तुम्ही को दूर करनी है
हमारा अब क्या बिगडेगा
भक्त तेरे कहाते हैं|
कान्हा तुमको आना होगा
अपना वचन निभाना होगा |
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bahut sundar,....
ReplyDeletejai shri krushna.
iisanuii.blogspot.com
waah Beena ji nahut sundar rachna...
ReplyDeletesahi he kanheya
ReplyDeletevachan diya he to nibhana padega
yaha mujhe vinod ji ka ek bhajan yad aa raha he
ham prem diwani hun @@@@@@@@@@@
bahut sundar likha, dil se nikli aavaj kanha bhi ansuni nahin kar pate hain, ve jaroor aur jaroor aate hain.
ReplyDeleteवो तो मेरे साथ ही है।मुझे देख्नना है।
ReplyDeleteअब तो आ ही जाओ कान्हा ! आपकी रचना ने मुझे अपनी रचना 'तुम्हें आना ही होगा' की याद दिला दी ! सच में कलयुग में पाप और अनीति का इतना बोलबाला हो गया है कि इसका विनाश करने के लिए कृष्ण को आना ही चाहिए ! एक ईमानदारी से परिपूर्ण ख़ूबसूरत रचना !
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