Wednesday, June 2, 2010

कान्हा अब तो आना होगा

कान्हा अब तो आना होगा
अपना वचन निभाना होगा
कल-कल करते बरसों बीते
नयना भी अब हो गए रीते |

विदुर घर छिलके खाते हो
द्रुपद का चीर बढाते हो
बिठा कर गीध को निज
गोद में आंसू बहाते हो |

जब हम बुलाते हैं
कान्हा क्यो न आते हो
पल-पल हमें तरसा
न जाने क्या तुम पाते हो|

मेरे धीरज की परीक्षा है
यह तो मुझको मालूम है
पर कान्हा अब क्यों

मुझे कमजोर करते हो|

जब दी बिपत तुमने
तुम्ही को दूर करनी है
हमारा अब क्या बिगडेगा
भक्त तेरे कहाते हैं|

कान्हा तुमको आना होगा
अपना वचन निभाना होगा |

6 comments:

  1. bahut sundar,....
    jai shri krushna.

    iisanuii.blogspot.com

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  2. waah Beena ji nahut sundar rachna...

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  3. sahi he kanheya

    vachan diya he to nibhana padega

    yaha mujhe vinod ji ka ek bhajan yad aa raha he

    ham prem diwani hun @@@@@@@@@@@

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  4. bahut sundar likha, dil se nikli aavaj kanha bhi ansuni nahin kar pate hain, ve jaroor aur jaroor aate hain.

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  5. वो तो मेरे साथ ही है।मुझे देख्नना है।

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  6. अब तो आ ही जाओ कान्हा ! आपकी रचना ने मुझे अपनी रचना 'तुम्हें आना ही होगा' की याद दिला दी ! सच में कलयुग में पाप और अनीति का इतना बोलबाला हो गया है कि इसका विनाश करने के लिए कृष्ण को आना ही चाहिए ! एक ईमानदारी से परिपूर्ण ख़ूबसूरत रचना !

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