पिताजी
यानी स्नेहिल सा स्पर्श
आवश्यकताओं को कहने से
पहले ही समझने वाले
कभी अंगुली थाम
तो कभी कंधे पर
कभी पीठ पर बिठा
तैराते यमुना में
कभीमेले में घुमाते
तो कभी बस में बिठा
अपने बचपन को शेयर करते |
ऐसे मेरे पिता
ना जाने कब और क्यों
एक दिन अचानक
बिजूके ं हो गए|
मैं समझ ना पाई |
कभी खेत में लगे
मुखौटेको देखकर
पूछा था पापा-पापा ये क्या है
लाली ,खेत की रखवाली
करते है ये बिजूके
और हतप्रभ होती
मैं जान ना पाई थी तब
ये अशक्त बिजूके क्या रक्षा
कर पायेंगे खेतों की
क्या डरेंगे पक्षी
इस कपडे पहनेबांस से
पर जब पिताजी का स्वर्गवास हुआ
तब जाना बैठक में चुपचाप बैठे पिता
बीमार पिता ,अशक्त पिता
घर की रक्षा के लिए
बिजूके बने रहते |
और हम वयस्क होते भी
सब कुछ उन पर छोड़
बहुत ही निश्चिं त रहते थे|
न जाने क्यो
ं तब से घर की बैठकमें
बैठे बुजुरगों के चेहेरों पर
मुझे बिजूके चिपके नजर आते हैं|
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
kitnaa sahee..bahut sundar
ReplyDeletekitnaa sahi..bahut sundar
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण!
ReplyDeleteसचमुच
ReplyDeleteद्रवित करने वाली एक यथार्थवादी पोस्ट ! बुजुर्गों का साया बहुत भाग्यशालियों को नसीब होता है !
ReplyDelete