Saturday, June 5, 2010

कृष्ण कृपा

व्यथित न हो जीवन में
कृष्ण मुझसे कहता था
लेकिन यह मूरख मन
चिंता में डूबा रहता था |

घोर निराशा की रात काली
जब जीवन से छूट गई
लीलाधर की लीला
तब मुझे समझ आई |

यशोदा ,सुदामा या ब्रजवासी
सबको बहुत रुलाया है
तो इसमें नई बात क्या
तेरी आँख में आंसू आया है|

चित से नटखट कान्हा का
काम परेशान करना है|
लाख विप्पत्ति आये जीवन में
तुमको हंसते रहना है|

नटखट काम भले हो कितने
श्याम का श्वेत बड़ा ही दिल है
बाधा कितनी आये राह में
मिलनी पक्की मंजिल है|

तू भले ही भूल जाएगा
या प्रश्न चिन्ह लगायेगा
लेकिन वो कुशल सारथी
रास्ता पार् कराएगा |

व्यथित न हो जीवन में
जब कृष्ण मुझसे कहेगा
तब ये मूरख मन बस
कृष्ण कृपा में डूबा रहेगा|

प्रिय बेटे ड़ा. वरूण भारद्वाज के सौजन्य से

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रभु प्रेम मे डूबी रचना है।बधाई।

    तू भले ही भूल जाएगा
    या प्रश्न चिन्ह लगायेगा
    लेकिन वो कुशल सारथी
    रास्ता पार् कराएगा |

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  2. आईये जानें .... मैं कौन हूं!

    आचार्य जी

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  3. तू भले ही भूल जाएगा
    या प्रश्न चिन्ह लगायेगा
    लेकिन वो कुशल सारथी
    रास्ता पार् कराएगा |

    vaah.........yahi to uski khoobi hai.........jai shri krishna.

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  4. भूल चूक लेनी देनी
    हरि शर्मा हाज़िर है.

    कृष्ण कृपा ही सत्य है और कृष्ण के अनेक कार्यो से दार्शनिक सोच के साथ जोडा है जीवन को.

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  5. पार लगाने वाला वही सारथि है।

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  6. कृष्णानुराग में डूबी एक भावपूर्ण रचना ! बहुत सुन्दर ! सच में जीवन में कितनी ही बाधायें आयें खेवनहार बस एक 'वही' है !

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