Wednesday, June 16, 2010

युग को कलियुग बना रहे

राम का युग त्रेता का युग था
कृष्ण का युग था द्वापर
युग को कलियुग बना रहे हम
गलत सोच अपनाकर।

नई बात नही , हर युग मे
नारी का शोषण होता है
आज भी सीता का देश निकाला
द्रोपदी का चीर हरण होता है।

लेकिन् सीता को सहारा देने
त्रेता मे वाल्मीकि आये थे
और मूकदर्शक बनी सभा से
दुर्योधन ने शाप ही पाये थे ।

अपमान झेलती आज नारी का
दुख कम करने कोई आता है?
तमाशा देखना पसन्द सभी को
मरहम कोई लगाता है?

सम्पत्ति के बटबारे पर
विवाद होता आया है
राम को यदि वनवास मिला तो
पान्ड्वो ने अज्ञातवास पाया है।

हक छिन जाने पर भी राम ने
वनवास सहर्ष स्वीकारा है
भरत ने भी भाई की खातिर
राज गद्दी को नकारा है।

युद्ध मे अपनो के आगे खडे
अर्जुन के हाथ डगमगाये थे
धर्म की रक्षा के लिये ही
धनुष पर वाण चढाये थे।

आज हर विवाद का हल
हिंसा से ही होता है
धर्म का भले ही नाम दे
जन क्रोध के वश मे होता है ।

सूरज वही चन्दा वही
वही आसमा के तारे है
जो कल था वह आज भी है
बस बदले विचार हमारे है।

हम कलियुग मे नही जी रहे
युग को कलियुग बना रहे
यह युग भी त्रेता बन जायेगा
निष्कपट अगर भावना रहे।


प्रिय वरुण के सौजन्य से

1 comment:

  1. हम कलियुग मे नही जी रहे
    युग को कलियुग बना रहे
    यह युग भी त्रेता बन जायेगा
    निष्कपट अगर भावना रहे। waah beena ji bahut sundar ekdam saty kaha hai...

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