Thursday, March 4, 2010

जिंदगी का क्या भरोसा

जिंदगी का क्या भरोसा
म्रत्यु पल-पल साथ है|
चार दिन की चांदनी है
फिर अंधेरी रात है|
चांदनी लें अंजुरी भर
यह भी कोई कम नहीं|
खल्क खूनी खंजरों का
आस्तीन में सांप है|
आबरू अपनी बचाकर
हो सके तो निकल चले|
वरना कीच उछालने
वालों की तो बारा त है|
तुम हवा को बाँध लो
धारा नदी की मोड दो|
फितरत को पढले आदमी
यह असंभव बात है|
आदमी हर काम को
स्वार्थ तुला पर तौलता|
व्यवहार में हर बात को
तिल को बनाता ताड़ है
यह हाय तौबा किसलिए
जो मिल रहा स्वीकार ले|
जाए दोनों दीन से
ना घर रहे ना घाट है|
घर द्वार अपने प्यार के
वन्दनवार शवनम से सजे|
हर चमन आबाद हो
यही आरजू यही ख्वाब है|
आगोश में जाने से पहले
मौत के,एक काम कर
कष्ट ले,मुस्कान दे
यही सत्य ,यही अरमान है |
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5 comments:

  1. wah! bahut badhiya

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  2. यह वक़्त की सही पडताल है ।

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  3. Waah!! bahut yatharthparak rachana hai ...har pankti me zindagi ki sachhai chupi hai. ise padhane ke liye aapko dhanywad!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  4. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!

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  5. इसी सत्य पर डटे रहें।

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