न जाने
समय की मार
हमें कहाँ ले जायेगी
और बुदबुदाते हुए हम
गुदगुदाए जाने पर भी
लंबे सोच में बैठे रह जायेगे
अपनी पीड़ा को ना भूल पायेंगे|
नश्तर जो चुभोये गए दिल में
भीतर तक
उन्होंने सारा लहू निचोड़ लिया है|
सख्त खाल में
चुभन अब होती नहीं
आँखों का पानी सूख चुका है|
अब जो शेष है
उसे कहने से भी क्या
तुम
महसूस सकते हो
तो महसूस लो
दुखती रग पर
जलाते अंगारे रखो
या अनुभूति की छुअनसे
उन्हें सहला दो
तुम्हारी मर्जी है|
दुखती रग पर
ReplyDeleteजलाते अंगारे रखो
या अनुभूति की छुअनसे
उन्हें सहला दो
तुम्हारी मर्जी है
-बहुत सुन्दर!
मानव मन की पीडा की चिर अनुभूति को सहज अभिव्यक्ति दी है.
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteदुखती रग पर
जलाते अंगारे रखो
या अनुभूति की छुअन से
उन्हें सहला दो
तुम्हारी मर्जी है|
निस्पृहता के भाव की अनुपम अभिव्यक्ति ! आपकी कलम में जादू है ! बधाई !
नहीं,तुम्हारी मर्जी नही चलेगी मैं अपना रिमोट दूसरे के हाथ में नहीं दूँगी
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