अभी तो
अपना छोटू
छोटू था ।
लडता -झगडता-और मचलता
अपनी छोटी-छोटी जिदो
को मनवाने की खातिर।
रूठना-मटकना और
फिर हारकर
अम्माके आंचल मे
दुबक कर सोजाना।
और जगना
फिर इक नई मासूमियत के साथ।
पर अब ये सब बीती
बाते है
क्योंकि आधुनिकता तो
जल्दी-जल्दी
बडा होनाभर
सिखाती है।जिम्मेवार बनाती है
भले ही सारा का सारा
बचपन बिला भरजाये।
बीना जी
ReplyDeleteऔर छोटू बडा हो गया । एक आम घटना का सजीव चित्रण है.
सच ऐसा ही होता है
- विजय तिवारी ' किसलय '
बचपन कौन छीन ले गया
ReplyDeleteशायद हम सब
बचपन तो ऐसे ही बिलाता है...
ReplyDelete--
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.