आज मैं बहुत खुश हूँ
क्योंकि मेरे घर
गौरैया आयी है
अभी -अभी
उसने चावल और गेंहू
के दाने भी चुगे
और कुल्लड में रखे
पानी में चोंच भी बोरी है|
मैंने उसे अपनी आँखों से देखा है
अब वह मेरे बगीचे की
बोगंबिलिया के झुर्मुट में
अपने सखी-सहेलियों से
बतरा रही है|
देखो वो भोली गौरैया
मुझे निहारती है
और चुन-चुन करती
कह ही देती है
अपने मन की बात|
मै फिर आउगी
बस करनामुझसे बात
मत रहना उदास
मेरा घोंसला कहीं भी हो
पर ये पड़ाव भी
मुझे बहुत भाते है|
जहां मुझे मिल जाए इंसान
और मुझे देख नाचें बच्चे|
हुर्रे.... सुन्दर-सी कविता........"
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
बड़े मीठे भाव जगाती बेहद प्यारी रचना ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteमेरे घर में भी एक कबूतर ने घोंसला बनाया ,दो बच्चे भी बड्रे हुए,अचानक कब उड्र गये पता नहीं,लेकिन अफसोस बहुत हुआ जो होना नहीं चाहिए था मेरे घर जन्म लेने का मतलब ये तो नहीं था कि वे मेरे घर की कैद मे रहते।
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