Monday, March 22, 2010

मेरे घर गौरैया आयी है

आज मैं बहुत खुश  हूँ 

क्योंकि मेरे घर 

गौरैया आयी है

अभी -अभी 

उसने चावल और गेंहू 

के दाने भी चुगे

और कुल्लड में रखे

पानी में चोंच भी बोरी है|

मैंने उसे अपनी आँखों से देखा है

अब वह मेरे बगीचे की

बोगंबिलिया के झुर्मुट में

अपने सखी-सहेलियों से 

बतरा रही है|

देखो वो भोली गौरैया 

मुझे निहारती है

और चुन-चुन करती 

कह ही देती है

अपने मन की बात|

मै फिर आउगी

बस करनामुझसे बात

मत रहना उदास

मेरा घोंसला कहीं भी हो 

पर ये पड़ाव भी

मुझे बहुत भाते है|

जहां मुझे मिल जाए इंसान 

और मुझे देख नाचें बच्चे|

3 comments:

  1. हुर्रे.... सुन्दर-सी कविता........"
    amitraghat.blogspot.com

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  2. बड़े मीठे भाव जगाती बेहद प्यारी रचना ! अति सुन्दर !

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  3. मेरे घर में भी एक कबूतर ने घोंसला बनाया ,दो बच्चे भी बड्रे हुए,अचानक कब उड्र गये पता नहीं,लेकिन अफसोस बहुत हुआ जो होना नहीं चाहिए था मेरे घर जन्म लेने का मतलब ये तो नहीं था कि वे मेरे घर की कैद मे रहते।

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