जी हाँ आज महिला दिवस है|
सुना है एक विधेयक पास होने की चर्चा है
पर जनाब बड़ी-बड़ी बातो को करने से
पहले ज़रा विचार कीजिये
कि क्या यह एक दिन के सुनहरे सब्जबाग
और ३६४ दिन का का अंधेरी रात नहीं है
क्या स्वतन्त्र भारत में हमारे अधिकार
अभी भी दूसरोंके हाथों गिरवी
रखे है जिसेसाल में एक दिन
लेने के क्रम में हम ढेरों ठठकरम
करते है|
क्याब हमारा अपना कुछ भी शेष
नहीं रहा है
हर अधिकार के लिए हाथ पसारना
हमारी नियति बन चुकी है|
क्यों हमें हर बार मांगना होता है
हाथ पसार कर वह सब
जो आधी आबादी को सहज सुलभ है |
और हम साल में ८मार्च को
एक दिन बस एक दिन
अपना मान खुश हो लेते है |
क्योंकि यह तो हम भी जानते है कि
कल वही होंगे ढाक के तीन पात
ये दिवस मनाने से तो अच्छा होता कि इंसान इंसानियत को जाने समझे।
ReplyDeleteनिर्मम यथार्थ के कटु सत्य को उजागर करती बहुत ठोस और वज़नदार अभिव्यक्ति ! बधाई !
ReplyDeleteकल वही होंगे ढाक के तीन पात
ReplyDeleteहम कोशिश करे कि ऐसा न हो ।