Friday, March 19, 2010

सब बया कहाँ होता है ?

हर पल जो घट जाता 

सब बया कहाँ होता है?

तुम दूर चले जाते हो

दीदार कहाँ होता है?

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मन को बहुत लुभाता

शैशब् का तुतलाना |

मन किशोर की उलझन

को खुली आँख सुलझाना |

श्रद्धेयों को मान खूब दिया जाता है|

पर उनके आगे क्या

मन खोला जाता है?

रिश्तों के खेल निराले

धूप छाँव दिखलाते|

स्वार्थ प्रेम दिखला कर

छुरा साथ ले चलते|

अब शेष रहे हो प्रियवर 

मन मुखर हुआ चाहता है|

मौन बिखर -बिखर कर

खंडित होना चाहता है|

जो बदले तेरे तेवर

झेल नहीं पायेंगे|

उमड़ेगी पीड़ा फिर-फिर

ढुलक अश्रु जायेंगे|

रीता करने की आदत

हो गई बहुत पुरानी |

चुप-चुप सुनते जाना

गुन-गुन गाने की ठानी |

चुपचुप  गुनगुन में ही

जीवन सार्थक हो जाता|

गुनगुन का चुप हो जाना 

है सबको सदा अखरता |

वैसे भी जो घट जाता

बस घट भर जाता है|

हम तुममें से कोई 

ना रोक इसे पाता है|

अनहोनी जब भी घटती

चोंका भर जाती है|

बार -बार कहने से निष्ठा

गलाने लगती है|

जो भाग्य लिखा है तेरा

उसको तू ही भोगेगा|

श्रम धैर्य और लगन से

रेखा तू ही बदलेगा|

अभिनव नूतन क्या होगा

शेष रहा अब क्या है?

तीन चौथाई  बीती

शोधन को क्या धरा है?

ये थी कल कीबातें 

अब समय बदल चुका है |

शोधन करना चाहे 

तो जब चाहे कर लेगा |

जीवन के टुकड़े करना

कोई अच्छी बात नहीं है|

2 comments:

  1. ह्रदय की उथल पुथल को अभिव्यक्त करती बेहद भावपूर्ण कविता !

    श्रम धैर्य और लगन से
    रेखा तू ही बदलेगा|

    बहुत ही अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ! मेरी बधाई स्वीकार करें !

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  2. बयाँ करने की आवश्यकता नहीं महसूस करें,अपना रास्ता निकालें जितना कर सकते हैं शेष छोड्र दें।

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