हर पल जो घट जाता
सब बया कहाँ होता है?
तुम दूर चले जाते हो
दीदार कहाँ होता है?
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मन को बहुत लुभाता
शैशब् का तुतलाना |
मन किशोर की उलझन
को खुली आँख सुलझाना |
श्रद्धेयों को मान खूब दिया जाता है|
पर उनके आगे क्या
मन खोला जाता है?
रिश्तों के खेल निराले
धूप छाँव दिखलाते|
स्वार्थ प्रेम दिखला कर
छुरा साथ ले चलते|
अब शेष रहे हो प्रियवर
मन मुखर हुआ चाहता है|
मौन बिखर -बिखर कर
खंडित होना चाहता है|
जो बदले तेरे तेवर
झेल नहीं पायेंगे|
उमड़ेगी पीड़ा फिर-फिर
ढुलक अश्रु जायेंगे|
रीता करने की आदत
हो गई बहुत पुरानी |
चुप-चुप सुनते जाना
गुन-गुन गाने की ठानी |
चुपचुप गुनगुन में ही
जीवन सार्थक हो जाता|
गुनगुन का चुप हो जाना
है सबको सदा अखरता |
वैसे भी जो घट जाता
बस घट भर जाता है|
हम तुममें से कोई
ना रोक इसे पाता है|
अनहोनी जब भी घटती
चोंका भर जाती है|
बार -बार कहने से निष्ठा
गलाने लगती है|
जो भाग्य लिखा है तेरा
उसको तू ही भोगेगा|
श्रम धैर्य और लगन से
रेखा तू ही बदलेगा|
अभिनव नूतन क्या होगा
शेष रहा अब क्या है?
तीन चौथाई बीती
शोधन को क्या धरा है?
ये थी कल कीबातें
अब समय बदल चुका है |
शोधन करना चाहे
तो जब चाहे कर लेगा |
जीवन के टुकड़े करना
कोई अच्छी बात नहीं है|
ह्रदय की उथल पुथल को अभिव्यक्त करती बेहद भावपूर्ण कविता !
ReplyDeleteश्रम धैर्य और लगन से
रेखा तू ही बदलेगा|
बहुत ही अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
बयाँ करने की आवश्यकता नहीं महसूस करें,अपना रास्ता निकालें जितना कर सकते हैं शेष छोड्र दें।
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