Wednesday, March 17, 2010

परिभाषित होता है|

मेरे द्वारा संचित 

स्नेहिल भावनाएं 

वस्तु के रूप में

तुम तक पार्सल की जाती है

और तुम्हारे द्वारा 

दस पांच के मध्य 

क्रय-विक्रय की नीति से 

ेउनको बाँट लिया जाता है|

मेरा स्नेह

बदले में भुना लिया जाता है

और 

आँखों देखा हाल मुझ तक 

धीरे-धीरे पास किया जाता है |

बौनी होती मैं

सोचने पर विवश होती हूँ|

तुम्हारा प्यार

मेरी कमजोरी बन गया है

दिल का धडकना

मजबूरी बन गया है|

अब शेष है वह

जो मेरे तुम्हारे बीच-

होने जैसा परिभाषित होता है|

3 comments:

  1. मन की उलझन और गूढ़ भावनाओं को बयान करती एक सुन्दर रचना ! आपका लेखन दिल को छूता है !

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  2. काहे खुद को कोसने पर आमादा हैं।हम दोसरे को बौना करने का माद्दा रखते हैं।

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