मेरे द्वारा संचित
स्नेहिल भावनाएं
वस्तु के रूप में
तुम तक पार्सल की जाती है
और तुम्हारे द्वारा
दस पांच के मध्य
क्रय-विक्रय की नीति से
ेउनको बाँट लिया जाता है|
मेरा स्नेह
बदले में भुना लिया जाता है
और
आँखों देखा हाल मुझ तक
धीरे-धीरे पास किया जाता है |
बौनी होती मैं
सोचने पर विवश होती हूँ|
तुम्हारा प्यार
मेरी कमजोरी बन गया है
दिल का धडकना
मजबूरी बन गया है|
अब शेष है वह
जो मेरे तुम्हारे बीच-
होने जैसा परिभाषित होता है|
Sundar Abhivyakti...Dhanywaad.
ReplyDeleteमन की उलझन और गूढ़ भावनाओं को बयान करती एक सुन्दर रचना ! आपका लेखन दिल को छूता है !
ReplyDeleteकाहे खुद को कोसने पर आमादा हैं।हम दोसरे को बौना करने का माद्दा रखते हैं।
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