Tuesday, March 23, 2010

मन की बात

बड़ी-बड़ी बातों को कहना और उन्हें व्यवहार में लाना 
दूसरों के लिए सिद्धांत बनाना और उस पर स्वयं चलना 
सत्य को रट लेना और उसको आचरण में उतार पाना 
यदि सरल ही होता ,तो आज सब पंडित हो गए होते | 

जब बात अपने वजूद की होती है 
तो हम ही नहीं बदलते 
हमारी परिभाषाएँ भी 
तेजी से बदलती है| 
मसलन सत्य बदलता है 
नाते रिश्ते बदलते हैं 
चेहरे बदलते हैं 
वादे बदलते है 
और यह सब बदलता है 
मात्र अपने को बनाए रखने की खातिर|

7 comments:

  1. बहुत अच्छी बात कही है।

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  2. हमे खुद को बदलने की आदत नहीं है
    हम तो औरों को बदलने में विश्वास रखते हैं

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  3. मन और दिमाग ...यानी सबसे बड़ी पहेली.......
    ........................
    विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
    .........
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
    लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....

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  4. और यह सब बदलता है
    मात्र अपने को बनाए रखने की खातिर|

    सही है !!

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  5. जब बात अपने वजूद की होती है
    तो हम ही नहीं बदलते
    हमारी परिभाषाएँ भी
    तेजी से बदलती है|
    बिलकुल सच कहा है आपने ! नीतिगत मूल्यों की पैरवी दूसरों के सन्दर्भ में जितनी उग्रता से की जाती है अपनी बारी आने पर वह उतनी ही बेमानी और गैर ज़रूरी हो जाती है ! बहुत अच्छी रचना !

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  6. सब बदल जाये वीना जी
    बस आपका और हमारा ईमान ना बदले

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  7. सब पंडित हों न हों पर मैं अपने लिये कोशिश तो जरूर कर सकता हूँ।

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