बड़ी-बड़ी बातों को कहना और उन्हें व्यवहार में लाना
दूसरों के लिए सिद्धांत बनाना और उस पर स्वयं चलना
सत्य को रट लेना और उसको आचरण में उतार पाना
यदि सरल ही होता ,तो आज सब पंडित हो गए होते |
जब बात अपने वजूद की होती है
तो हम ही नहीं बदलते
हमारी परिभाषाएँ भी
तेजी से बदलती है|
मसलन सत्य बदलता है
नाते रिश्ते बदलते हैं
चेहरे बदलते हैं
वादे बदलते है
और यह सब बदलता है
मात्र अपने को बनाए रखने की खातिर|
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बहुत अच्छी बात कही है।
ReplyDeleteहमे खुद को बदलने की आदत नहीं है
ReplyDeleteहम तो औरों को बदलने में विश्वास रखते हैं
मन और दिमाग ...यानी सबसे बड़ी पहेली.......
ReplyDelete........................
विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
.........
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
और यह सब बदलता है
ReplyDeleteमात्र अपने को बनाए रखने की खातिर|
सही है !!
जब बात अपने वजूद की होती है
ReplyDeleteतो हम ही नहीं बदलते
हमारी परिभाषाएँ भी
तेजी से बदलती है|
बिलकुल सच कहा है आपने ! नीतिगत मूल्यों की पैरवी दूसरों के सन्दर्भ में जितनी उग्रता से की जाती है अपनी बारी आने पर वह उतनी ही बेमानी और गैर ज़रूरी हो जाती है ! बहुत अच्छी रचना !
सब बदल जाये वीना जी
ReplyDeleteबस आपका और हमारा ईमान ना बदले
सब पंडित हों न हों पर मैं अपने लिये कोशिश तो जरूर कर सकता हूँ।
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