Friday, March 5, 2010

अपने शिवत्व को ना छोड़े

शिव अपने गले में सर्प धारण करते हैं ,उनका वाहन वृषभ है|उनके पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर है,जो सर्प का शत्रु है और उसे खाता है|माता पार्वती का वाहन सिंह हैजो वृषभ को अपना भोजन बनाता है |गणेश का वाहन चूहा है जिसका शत्रु सर्प है|शिव रूद्रस्वरूपा ,उग्र और संहारक माने गए हैं तथा उग्रता का निवास मस्तिष्क में हैकिन्तु शान्ति की प्रतीक गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है |उनके कंठ में तो विष हैजिससे वे नीलकंठ कहलाये|विष की तीव्रता के शमन के लिए मस्तिष्क में.अर्धचंद्र विराजमान है|सर्प तमो गुना का प्रतीक है जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है|
इस प्रकार सर्प जैसा क्रूर और हिंसक जीव महाकाल के अधीन है|शिव के गले में मुंडमाल इस बात का प्रतीक हैकि उन्होनें मृत्युको गले रखा हैअर्थात इस तथ्य को वे याद दिलाते हैं कि जो जन्म लेताहैवह मरता अवश्य है|शिव द्वारा हस्तिचर्म और व्याघ्र चर्म को धारण करने की कल्पना की गई है |सिंह हिंसा और हाथी अभिमान का प्रतीक है शिव ने इन दोनों को धारण कर रखा है शिव अपने शरीर पर शमशान की भस्म धारण करते हैं जो जगत की निस्सारता का बोध कराती है अर्थात शरीर की नश्वरता की याद दिलाती है |
शिव इसलिए अनुकरणीय है क्योंकि इतने विरोधाभासों में भी शिव बने रहते हैं|संसार में शिव भक्तों की संख्या बहुत अधिक है|हम जिस देवता की अर्चना करते है उस देवत्व का ,कम से कम ,एक गुण का तो पालन करना ही चाहिए|हम विपरीत परिस्थिति में अपने स्वभाव का परित्याग कर देते हैं और तुरंत ही आक्रामक हो जाते है|अनुकूल परिस्थिति ना होने पर भी अपने मूल स्वभाव को ना त्यागना शिवत्व की श्रेणी में आता है और प्रत्येक को इस धर्मका पालन करना तो आवश्यक है|

4 comments:

  1. अच्छा लिखा आपने....."
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

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  2. शिवत्व के बिम्ब का स्वभाव के मूल्यांकन मे यह अच्छा प्रयोग है ।

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  3. शिवत्व को छोड्र्ने या गृहण् की बात तो तभी होगी जब शिवत्व का अर्थ जानेंगे।पहले इसका मतलब जानने की आवश्यक्ता है।

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  4. बहुत सकारात्मक सन्देश प्रसारित करता आलेख ! यदि हर इंसान सतही शिवभक्ति करने की अपेक्षा विशुद्ध मन से उनका एक भी गुण आत्मसात कर ले तो विश्व से काफी मात्रा में नकारात्मकता कम हो जाए ! सारगर्भित आलेख के लिए मेरी शुभाशंसा स्वीकार करें !

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