Wednesday, March 17, 2010

माँ-बेटी

माँ

तुम माँ होकर भी 

अपने गरिमा को सहेज नहीं पाती हो |

युवा होती बच्ची से 

बहस कर अपनी इज्जत में बट्टा लगाती हो |

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शैशब का तुतलाना

आज 

व्यंग वाणों में  और कल का दुलार 

खीझ बन बरसा है|

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यह,वही नन्ही बच्ची है

जिसके माथे की तपन से 

तुम्हारा कलेजा

मुँह को आता था |

यह वही माँ है 

जिसने सब कुछ गवां 

तुम्हें,मात्र ,पाया था|

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आज

दोनों ही

अपने-अपने भाव को भुला 

रणक्षेत्र  में खड़ी हो

मानो एक दूजे की जान लेने को आदी हो|

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मेरा कहना मानो तो

माँ तुम माँ 

और तुम फिर से छुटकी 

बन जाओ

वरना चुक जायेगी मेरी संवेदना |

4 comments:

  1. A bitter experience or otherwise ?

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  2. कामू ने एक बार लिखा था कि "जीवन में एक बार हम अपने प्रिय की अनिष्ट की कामना अवश्य ही करते हैं."काफी प्रैक्टिकल कविता लगी............"
    amitraghat.blogspot.com

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  3. मेरा कहना मानो तो

    माँ तुम माँ

    और तुम फिर से छुटकी

    बन जाओ

    वरना चुक जायेगी मेरी संवेदना


    -बहुत भावानात्मक अभिव्यक्ति!

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  4. सत्य के बहुत करीब एक संवेदनशील प्रस्तुति ! भावनायें कब करवट लेकर अपना रूप बदल लेती हैं पता ही नहीं चल पाता !बहुत सुन्दर !

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